नमस्कार दोस्तों वैसे तो यह लेख मैं अपने ब्लॉग मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति पर पहले से लिख चुका हूँ किन्तु आप सभी के लिए मैं यहाँ पुनः लेकर प्रस्तुत हुआ हूँ ...तो आप इसे पढिये और अपनी राय दीजिये याद है तुम्हें जब तुम कहा करती थीं कि चाहे जो हो जाए ...हम दोनों यूँ ही एक दूसरे से प्यार करते रहे या न रहे ...हम मिले या बिछुडे ...लेकिन में तुम्हे यूँ ही हर रोज़ एक मेल जरूर करुँगी ....हाँ शायद याद हो तुम्हें ...हाँ याद ही होगा
और मैं थोडा सा मुस्कुरा जाता था तुम्हारी इस बात पर ....शायद वो प्यार था तुम्हारा मेरे लिए जो ये सब कहता था ....कितना चाहा तुमने मुझे ...सच बहुत ज्यादा ...
याद है मुझे जब तुम रो पड़ी थी ...कई दिन मुझ से न मिल पाने के कारण .... कैसे चुपाया था मैंने तुम्हें ...पास जो नहीं थी तुम .... उस पल तुम्हारी आँखों के आँसू महसूस किये थे मैंने ...दिल तो किया था कि तुम्हें सीने से लगा लूँ ...बाहों में भर लूँ ....और कहूँ ....पगली ऐसे भी कोई रोता है ....मैं तो हर पल तुम्हारे साथ हूँ ...तुम्हारी बातों में, यादों में ....उस नरमी में जो तुम महसूस करती हो हमेशा ...ऐसे जैसे तुम मेरे सीने से लिपटी हुई हो ....फिर तुम यूँ रोया न करो .....
उस पल कितना मुश्किल हो गया था तुम्हें मनाना ....शायद बहुत मुश्किल .....और तुम कहने लगी थीं ....तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊँगी ....मुमकिन नहीं शायद तुम्हारे बिना जीना ....और उस पल तुमने मुझे भी रुला सा ही दिया था .....मुझे पता है कैसे झूठ मूठ का हँस दिया था मैं .....और तुम बोली थी जाओ मैं बात नहीं करती तुमसे ....तुम हमेशा ऐसे ही करते हो
याद है मुझे तुम्हें मुझसे एक दिन की भी दूरी बर्दाश्त नहीं होती थी ...आज यूँ लगता है कि सदियाँ गुजर गयी हों ...कहने को अभी 1 साल ही हुआ है ....ऐसा शायद ही कभी हुआ हो जब तुम बिना मुझसे बात किये रह पायी हो ....कितना गहरा था हमारा प्यार और हमारा रिश्ता ....मैं आज भी तुम्हारे हाथों की गर्मी महसूस करता हूँ अपने हाथों में ....और लगता है कि तुम यहीं कहीं हो मेरे पास ....अचानक से ही कोई हँसी गूंजती है मेरे कानों में .....क्या तुम आज भी खुश हो .....खुश हो न तुम ......तुम खुश हो अगर तो मैं समझूंगा कि में जी लूँगा यूँ ही इस कदर ...शायद तुम्हारी यादों को याद कर कर के .....तुम्हारी आँखें अभी भी मेरी आँखों में देखती नज़र आती हैं .....जब तुम आँखों से आँखों में देखते रहने का खेल खेलती थी ....कितना पसंद था तुम्हें वो खेल .....और तुम्हें जीत कर खुश होते देख मैं कितना खुश होता था ...हर बार तुमसे यही सोच हारा हूँ मैं .....
मोहब्बत अपने आप में एक सुकून होती है ...एक ऐसी चाहत जिसको पाने की चाहत एक नशा बन जाती है ...और हर रोज़ , हर पल हम उस नशे में रहते हैं ....मोहब्बत पा लेने भर का नाम नहीं ...मोहब्बत में जो हो उसे मोहब्बत लफ्ज़ से भी मोहब्बत होती है ....
इंसानी दुनिया शायद समझती भी है और नहीं भी ....ये मिलावटें और नासमझी दो लोगों को जुदा कर देती है ...कभी कभी खुद इंसान अपनी गलती से मोहब्बत खो देता है ...फिर उसके पास कोई नहीं होता पर जिसने सच्ची मोहब्बत की हो वो जिंदगी भर उस नशे को महसूस करता रहता है ...कभी ख़ुशी के रूप में तो कभी उसे गम बनाकर
याद है न तुम्हें... जब मैंने तुमसे ये बातें कही थीं ...और तुम बोली थी कि तुम्हें तो किसी फिल्म का डायलोग राईटर होना चाहिए था ...उस पल कितना हँसा था मैं ...फिर तुमने मेरा गला पकड़ लिया था ....
इस दुनिया में इंसान ने जाति और धर्म की दीवारें खड़ी कर दीं ...देखा तुम जिन बातों पर हँसती थी ....आज उन्हीं दीवारों को तुम पार न कर सकीं ....उन्ही दीवारों ने हमारे बीच एक फ़ासला तय कर दिया ....
मैं आज भी तुम्हारे किये हुए वादे के सच होने का इंतज़ार करता हूँ ...कल रात तुम आई थी मेरे ख्वाबों में हकीकत बन कर ...पर आँख खोलने पर तुम न थी ...आजकल तुमने ये नया खेल शुरू कर दिया है ... हर रोज़ ये सोच कर सुबह उठता हूँ कि कहीं तुम्हारा मेल तो नहीं आया ... किसी दिन अगर तुम्हारा सवाल आया तो ...कह सकूँ कि तुम्हारी साँसों को मैं आज भी महसूस करता हूँ
तुम्हें सर्दी में भी पंखा चलाकर सोने की बुरी आदत है ...आजकल मौसम बदल गया है .....अपना ख्याल रखना .....